Tuesday, April 19, 2011

दोस्त सच्चा है कि बनावटी, ऐसे पहचाने ! !



हमारे मन का स्वभाव ऐसा है कि वह मीठा बोलने वालों को ही ज्यादा पंसंद करता है। अच्छे-बुरे से मन को कुछ लेना-देना नहीं। असली दोस्त की पहचान में भी इसी कारण से इंसान से भूल हो जाती है। व्यक्ति मीठा बोलने वाले मनोरंजक व्यक्ति को ही अपना पक्का दोस्त समझ बैठते हैं, जबकि असलियत में ऐसा कुछ होता नहीं। इस विषय में कबीरदास जी ने बहुत सही बात कही है- निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटि छवाय।

 बिन  साबुन  बिना निर्मल करे सुभाय।।

इसीलिये कहते हैं सच्चा दोस्त उस निदंक की तरह होता है जो अच्छाईयों पर आपकी तारीफ के साथ साथ आपकी बुराईयों को सामने लाकर उनको दूर करने में आपकी मदद करता है।



ऐसा ही एक किस्सा है कृष्ण और अर्जुन  की दोस्ती का द्वारिका में एक ब्राह्मण के घर जब भी कोई बालक जन्म लेता तो वह तुरंत मर जाता एक बार वह ब्राह्मण अपनी ये व्यथा लेकर कृष्ण के पास पहुंचा परन्तु कृष्ण ने उसे नियती का लिखा कहकर टाल दिया। उस समय वहां अर्जुन भी मौजूद थे।अर्जुन को अपनी शक्तियों पर बड़ा गर्व था। अपने मित्र की मदद करने के लिए अर्जुन ने ब्राह्मण को कहा कि मैं तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा। तुम इस बार अपनी पत्नी के प्रसव के समय मुझे बुला लेना ब्राह्मण ने ऐसा ही किया लेकिन यमदूत आए और ब्राह्मण के बच्चे को लेकर चले गए।



अर्जुन ने प्रण किया था कि अगर वह उसके बालकों को नहीं बचा पाएगा तो आत्मदाह कर लेगा।

जब अर्जुन आत्म दाह करने के लिए तैयार हुए तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन को रोकते हुए कहा कि यह सब तो उनकी माया थी उन्हें ये बताने के लिए कि कभी भी आदमी को अपनी ताकत पर गर्व नहीं करना चाहिए क्यों कि नियती से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।




Varinder Kumar
ASTROLOGER
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