ज्योतिषियों
के अनुसार आज यानी 4 जून, सोमवार (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा) को खण्डग्रास
चंद्रग्रहण होगा। यह चंद्रग्रहण ज्येष्ठा नक्षत्र, वृश्चिक राशि में होगा।
भारत में यह चंद्रग्रहण दिखाई नहीं देगा इसलिए धार्मिक दृष्टि से भारत में
इसकी कोई मान्यता नहीं रहेगी।
ज्योतिषियों के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ दोपहर 3 बजकर 30 मिनट से होगा जो शाम 5 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगा। ग्रहण का सूतक काल 4 जून को सुबह सूर्योदय के साथ ही प्रारंभ हो जाएगा। ग्रहण का कुल समय 3 घंटे 09 मिनट रहेगा। यह चंद्रग्रहण एशिया, ऑस्टे्रलिया, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, पेसिफिक महासागर आदि स्थानों पर दिखाई देगा।
इन बातों का रखें ध्यान
धर्म शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में अपने इष्टदेव का ध्यान, गुुरु मंत्र का जप, धार्मिक कथाओं का श्रवण एवं मनन करना चाहिए। इनमें से कुछ न कर पाने की स्थिति में राम नाम का या अपने इष्टदेव के नाम का जप भी कर सकते हैं। इस दौरान भगवान की मूर्ति को छूना, भोजन पकाना या खाना एवं पीना, सोना, मनोरंजन या कामुकता का त्याग करना चाहिए। ग्रहण के पश्चात पूरे घर की शुद्धि एवं स्नान कर दान देने का महत्व है।
ये लोग न देखें ग्रहण
जिसके जन्म नक्षत्र, जन्मराशि, जन्म लग्न पर ग्रहण हो वे लोग ग्रहण के दर्शन न करें। ग्रहण के लगते ही स्नान करके जप, पाठ आदि पूजन करें। ग्रहण के मध्य समय में हवन व देव पूजन करें। ग्रहण के अंत में या बाद में दान-दक्षिणा दें। मोक्ष के बाद पुन: स्नान करें।
वैज्ञानिक कारण
चंद्रग्रहण पूर्णिमा को होता है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी होती है और तीनों (सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा) बिल्कुल एक सीध में, एक सरल रेखा में होते हैं। पृथ्वी जब सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और चंद्रमा पृथ्वी की छाया में होकर गुजरता हैं तो चंद्रग्रहण होता है। पृथ्वी की वह छाया चंद्रमा को ढंक देती है जिससे चंद्रमा में काला मंडल दिखाई देता है। यह खगोलीय घटना ही चंद्रग्रहण कहलाती है।
धार्मिक कारण
अमृत प्राप्ति के लिए जब देवताओं व दानवों ने समुद्र मंथन किया तो समुद्र में से धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले, इस अमृत कलश को इंद्र का पुत्र जयंत लेकर भाग गया। अमृत कलश के लिए देवताओं व दानवों में घोर युद्ध हुआ। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया और कहा कि मैं बारी-बारी से देवता व दानवों को अमृत पिला दूंगी। सभी सहमत हो गए। मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु चालाकी से देवताओं को अमृत पिलाने लगे और दानवों के साथ छल लिया। यह बात राहु नामक दैत्य ने जान ली और वह रूप बदलकर सूर्य व चंद्र के बीच जा बैठा। जैसे ही राहु ने अमृत पीया, सूर्य व चंद्रदेव ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु को यह बात बता दी। तत्काल भगवान ने सुदर्शन चक्र निकाला और राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया लेकिन अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं। राहु के दो टुकड़े हो गए। एक बना राहु दूसरा बना केतु। इस घटना के बाद से राहु ने सूर्य व चंद्रदेव से दुश्मनी पाल ली। धर्म ग्रंथों के अनुसार राहु व केतु उसी बात का बदला ग्रहण के रूप में लेते हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ दोपहर 3 बजकर 30 मिनट से होगा जो शाम 5 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगा। ग्रहण का सूतक काल 4 जून को सुबह सूर्योदय के साथ ही प्रारंभ हो जाएगा। ग्रहण का कुल समय 3 घंटे 09 मिनट रहेगा। यह चंद्रग्रहण एशिया, ऑस्टे्रलिया, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, पेसिफिक महासागर आदि स्थानों पर दिखाई देगा।
इन बातों का रखें ध्यान
धर्म शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में अपने इष्टदेव का ध्यान, गुुरु मंत्र का जप, धार्मिक कथाओं का श्रवण एवं मनन करना चाहिए। इनमें से कुछ न कर पाने की स्थिति में राम नाम का या अपने इष्टदेव के नाम का जप भी कर सकते हैं। इस दौरान भगवान की मूर्ति को छूना, भोजन पकाना या खाना एवं पीना, सोना, मनोरंजन या कामुकता का त्याग करना चाहिए। ग्रहण के पश्चात पूरे घर की शुद्धि एवं स्नान कर दान देने का महत्व है।
ये लोग न देखें ग्रहण
जिसके जन्म नक्षत्र, जन्मराशि, जन्म लग्न पर ग्रहण हो वे लोग ग्रहण के दर्शन न करें। ग्रहण के लगते ही स्नान करके जप, पाठ आदि पूजन करें। ग्रहण के मध्य समय में हवन व देव पूजन करें। ग्रहण के अंत में या बाद में दान-दक्षिणा दें। मोक्ष के बाद पुन: स्नान करें।
वैज्ञानिक कारण
चंद्रग्रहण पूर्णिमा को होता है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी होती है और तीनों (सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा) बिल्कुल एक सीध में, एक सरल रेखा में होते हैं। पृथ्वी जब सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और चंद्रमा पृथ्वी की छाया में होकर गुजरता हैं तो चंद्रग्रहण होता है। पृथ्वी की वह छाया चंद्रमा को ढंक देती है जिससे चंद्रमा में काला मंडल दिखाई देता है। यह खगोलीय घटना ही चंद्रग्रहण कहलाती है।
धार्मिक कारण
अमृत प्राप्ति के लिए जब देवताओं व दानवों ने समुद्र मंथन किया तो समुद्र में से धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले, इस अमृत कलश को इंद्र का पुत्र जयंत लेकर भाग गया। अमृत कलश के लिए देवताओं व दानवों में घोर युद्ध हुआ। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया और कहा कि मैं बारी-बारी से देवता व दानवों को अमृत पिला दूंगी। सभी सहमत हो गए। मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु चालाकी से देवताओं को अमृत पिलाने लगे और दानवों के साथ छल लिया। यह बात राहु नामक दैत्य ने जान ली और वह रूप बदलकर सूर्य व चंद्र के बीच जा बैठा। जैसे ही राहु ने अमृत पीया, सूर्य व चंद्रदेव ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु को यह बात बता दी। तत्काल भगवान ने सुदर्शन चक्र निकाला और राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया लेकिन अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं। राहु के दो टुकड़े हो गए। एक बना राहु दूसरा बना केतु। इस घटना के बाद से राहु ने सूर्य व चंद्रदेव से दुश्मनी पाल ली। धर्म ग्रंथों के अनुसार राहु व केतु उसी बात का बदला ग्रहण के रूप में लेते हैं।