ठंड ने दस्तक दे ही है और जल्दी ही हमारे ऊनी कपड़े भी बाहर निकलने वाले हैं। इस वर्ष जिस प्रकार गर्मी और बरसात अधिक रही है, इसी उम्मीद जताई जा रही है कि अब ठंड भी कड़ाके की पड़ेगी। ठंड से बचने के लिए सभी ऊनी स्वेटर पहनना ही पड़ता है। स्वेटर से ठंड के बचाव के साथ ज्योतिषीय लाभ भी प्राप्त हो जाए तो क्या बात है...
तो जानिए इस शीत ऋतु में ठंड से बचाव के साथ ज्योतिषीय लाभ कैसे प्राप्त किया जा सकता है-
आप यदि राशि अनुसार बताए गए रंगों के स्वेटर पहनेंगे तो आपको ज्योतिषीय ग्रहों का भी लाभ प्राप्त होगा। इससे ठंड से मुक्ति के साथ ग्रह दोषों से मुक्ति मिलेगी, इसी तरह होगा डबल फायदा...
आपकी राशि के अनुसार जानिए आपको किस रंग का स्वेटर पहनना चाहिए-
मेष: जिन लोगों की मेष राशि है उन्हें लाल या महरुन रंग का स्वेटर पहनना चाहिए। इस राशि का स्वामी मंगल है। मंगल ग्रह से लाभ प्राप्त करने के लिए इस राशि के लोगों को लाल रंग का स्वेटर पहनना बेहद फायदेमंद रहेगा।
वृष: वृष राशि के लोगों के लिए सफेद या सिल्वर रंग का स्वेटर शुभ रहेगा। इस राशि का स्वामी शुक्र है और इस ग्रह का पसंदीदा रंग सफेद ही है।
मिथुन: बुध की इस राशि के लोगों को हरे रंग का स्वेटर पहनना लाभदायक रहेगा। बुध ग्रह का संबंध हरे रंग से है।
कर्क: इस राशि का स्वामी हमारे मन को नियंत्रित करने वाला चंद्र है। चंद्र से शुभ लाभ प्राप्त करने के लिए सफेद रंग के स्वेटर पहनना चाहिए।
सिंह: इस राशि के लोगों को लाल, नारंगी, पीले रंग के स्वेटर खास फायदेमंद है। इस राशि का स्वामी सूर्य है और इसका संबंध में इन रंगों से है।
कन्या: कन्या राशि के लोगों के लिए हरे रंग का स्वेटर बेहद शुभ रहेगा। इस राशि का स्वामी बुध है और बुध का रंग हरा है।
तुला: इस राशि के लिए सफेद और सिल्वर रंग सर्वश्रेष्ठ हैं। इन रंगों के स्वेटर पहनने से राशि स्वामी शुक्र की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है।
वृश्चिक: मंगल की वृश्चिक राशि के लोगों को महरुन या लाल रंग फायदा पहुंचाएगा।
धनु: धनु राशि के लोगों को पीला, गोल्डन कलर का स्वेटर पहनना चाहिए। इस राशि का स्वामी देव गुरु बृहस्पति है और बृहस्पति के पसंदीदा रंग यही हैं।
मकर: इस राशि के लोगों को नीला या काले रंग का स्वेटर पहनने से विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है। इस राशि का स्वामी शनि है। शनि को काला और नीला रंग बेहद पसंद है।
कुंभ: शनि इस राशि का भी स्वामी है अत: इस राशि के लोगों को नीले या काले रंग का स्वेटर पहनने से शनि कृपा प्राप्त होगी।
मीन: इस राशि का स्वामी गुरु ग्रह है। अत: इस राशि के लोगों को बृहस्पति का पसंदीदा रंग पीला, नारंगी, गोल्डन रंग के स्वेटर पहनना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार भगवान को प्रसन्न करने की कई अलग-अलग विधियां और पूजन पद्धितियां बताई गई हैं। सभी विधियों का अपना अलग महत्व है। शिव पुराण के अनुसार मुख्य रूप से पांच प्रकार से ईश्वर की आराधना की जा सकती है।
देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए सृष्टि के प्रारंभ से ही कई प्रकार की विधियों का चलन है। हमारे जीवन से जुड़ी सभी समस्याओं का निराकरण देवी-देवताओं की प्रसन्नता से हो जाता है। किसी भी देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए ये पांच विधियां सर्वश्रेष्ठ बताई गई हैं। शिव पुराण के अनुसार पूजा की पांच विधियां सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं-
पहली विधि है जिस देवता के निमित्त पूजा करनी हैं उन देवी-देवताओं के मंत्र का जप करना। दूसरी विधि है होम या यज्ञ करना। तीसरी विधि है संबंधित देवता के नाम पर दान करना। चौथी विधि है तप करना। अंतिम पांचवी विधि है देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्र पर सोलह उपचारों से उनकी पूजा करना, आराधना करना।
यह सभी पांचों विधियां हजारों साल पुरानी हैं और आज भी इसी प्रकार भगवान को प्रसन्न करने की परंपरा प्रचलित है।
रोम-रोम में ईश्वर की मौजूदगी मानने वाले सनातन धर्म में प्रकृति की हर रचना पूजनीय है। इसी कड़ी में अनेक पेड़-पौधे देव वृक्ष माने गए हैं। जिनमें तुलसी, वट, पीपल की भांति ही आंवले का पौधा भी पूजनीय और मंगलकारी माना गया है। जिसके लिए कार्तिक शुक्ल नवमी का दिन नियत है, जो आंवला नवमी (4 अक्टूबर) के रूप में भी प्रसिद्ध है।
आंवला नवमी या कूष्माण्ड नवमी पर आवंले के वृक्ष की पूजा में विशेष उपाय देवी कृपा से धन, वैभव और अक्षय सुख देने के साथ पापों का नाश करने वाले माने गए हैं। इन सरल उपायों में धात्री यानी आंवले वृक्ष की परिक्रमा विशेष मंत्रो के साथ करना कामनासिद्धि करने वाला माना गया है।
जानते हैं आंवला पूजन की आसान विधि और विशेष देवी व परिक्रमा मंत्र -
- आंवला नवमी पर स्नान के बाद धात्री यानी आंवले के वृक्ष की पंचोपचार पूजा करें। जिसमें गंध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य के बाद उसकी जड़ में दूध अर्पित कर जगतजननी के स्वरूप देवी कूष्माण्डा के नीचे लिखे मंत्र का स्मरण करते हुए सूत वृक्ष के आस-पास लपेटें-
दुर्गतिनाशिन त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्।।
- इसके बाद घी या कर्पूर दीप जलाकर नीचे लिखे मंत्र से वृक्ष की परिक्रमा व आरती यश व सुख की कामना से करें -
यानि कानि च पापानि जन्मातरकृतानि च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।
- पूजा, आरती व प्रदक्षिणा के बाद यथाशक्ति कूष्माण्ड यानी कुम्हड़े में धन रखकर ब्राहृमणों को दान करना समृद्धि की कामना पूरी करता है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिनों की गहरी नींद से जागते हैं। इसे देवोत्थापनी या देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 6 नवंबर को है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है।
देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करें।
भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जप करें-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।
इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।
इसके बाद प्रहलाद, नारदजी, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अंबरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
ऐसा कई बार होता है कि हमारा कोई काम बनते-बनते बिगड़ जाता है। ऐसे में हमें काफी निराशा होती है। कई बार ऐसा भी होता है कि हमारे कार्य की सफलता उन लोगों पर टिकी होती है जिनके हमारी बिल्कुल नहीं बनती। ऐसे समय अगर नीच लिखे मंत्र का विधि-विधान से जप किया जाए तो हर बिगड़ी हुई बात बन जाती है और कार्य सिद्धि हो जाता है।
मंत्र
ओम् श्रीं श्रीं ओम् ओम् श्रीं श्रीं हुं फट् स्वाहा।
जप विधि
सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले भगवान शिव की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में इस मंत्र का असर दिखने लगेगा और आपके कार्य बनते जाएंगे।
सभी चाहते हैं तो उनके घर में हमेशा सुख-शांति रहे और लक्ष्मी का स्थाई वास रहे। जिससे कि जीवन में कभी किसी प्रकार की आर्थिक समस्या का सामना न करना पड़े। लेकिन जिस तरह का जीवन हम जी रहे हैं उससे सुख-शांति और लक्ष्मी एक साथ मिलना बहुत ही कठिन है। यदि इन सभी की चाह हो तो नीचे लिखा उपाय करना चाहिए।
उपाय
प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर घर के निकट स्थित किसी पीपल के पेड़ तक जाएं और उस पेड़ की छाया में खड़े होकर लोहे के बर्तन में पानी, शक्कर, घी और दूध मिलाकर उसकी जड़ में डालें। यह उपाय प्रतिदिन करें। यदि किसी दिन सुबह ये उपाय न कर पाएं तो दिन में किसी भी समय (शाम को नहीं) यह उपाय कर सकते हैं। यह उपाय करने से कुछ ही दिनों में आपके घर में सुख-शांति और लक्ष्मी का स्थाई निवास होगा।
जानिए: आज का पंचांग, किस दिशा में यात्रा करें? चोरी गई वस्तु कहां मिलेगी? आज कौन सा ग्रह, किस राशि में है?
3 नवंबर 2011: गुरुवार, सूर्य दक्षिणायन, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, शोभन नाम संवत्सर, संवत् 2068, शरद ऋतु।
तिथि - अष्टमी
नक्षत्र - श्रवण
सूर्योदय - 05:50
सूर्यास्त - 07:10
अक्षांश - 23:11 उत्तर
देशांश - 75:43 पूर्व
ग्रह स्थिति - चंद्र मकर में, सूर्य तुला में, मंगल कर्क में, बुध कन्या में, गुरू मेष में, शुक्र वृश्चिक में, शनि कन्या राशि में, राहु वृश्चिक में और केतु वृष राशि में स्थित है।
किस दिशा में यात्रा - उत्तर दिशा, यदि आवश्यक हो तो तिल का सेवन करके यात्रा करें।
किस दिशा में चोरी - दक्षिण दिशा में चोरी गई समझें, कोशिश करने पर ही मिलेगी।