Thursday, June 7, 2012

मेरा अपना घर हो, इसके लिए क्या करूं?


पाठकों के ज्योतिष और वास्तु संबंधी सवालों के जवाब दे रहे हैं ज्योतिषीय एवं आध्यात्मिक चिन्तक वरिन्दर कुमर

प्रश्न: मेरा स्वयं का घर नहीं है। क्या प्राचीन ग्रंथों में इसका कोई उपाय सुझाया गया है?
-लक्ष्मण दास पुराणिक

उत्तर: स्वयं को सुयोग्य बनाकर व अपनी क्षमता को पहचानकर किए गए उद्यम से प्राप्त धन की सही योजना आपको कभी न कभी उचित आवास अवश्य उपलब्ध कराएगी, ऐसा मेरा विश्वास है। जहां तक प्राचीन ग्रंथों की बात है, तो सबसे स्पष्ट वर्णन 'स्कंद पुराण' के 'वैष्णव खंड' में मिलता है, जहां 'ॐ नम: श्री वाराहाय धरण्युद्धारणाम् स्वाहा' मंत्र के 4 लक्ष (कलयुग में 16 लक्ष) जाप तथा घी व मधुमिश्रित खीर से दशांश हवन का परामर्श प्राप्त होता है। इस मंत्र के ऋषि-'संकर्षण', देवता- 'वाराह', छंद- 'पंक्ति' और बीज- 'श्री' हैं, परंतु ये सब तंत्रशास्त्र की तकनीकी बातें हैं, जो ज्ञान के लिए तो ठीक हैं, पर बगैर किसी विद्वान की सलाह के मैं इन्हें आजमाने की सलाह कदापि नहीं देता। ध्यान रखें, सही दिशा में किए गए 'सटीक कर्म' का कोई विकल्प नहीं है।


प्रश्न: मैंने घर बनाने के लिए दो प्लॉट देखा है। किसी ने बताया है कि एक प्लॉट 'नागपृष्ठ' है और दूसरा 'गज पृष्ठ' है। ये क्या होता है, क्या इसे खरीदना शुभ रहेगा?

-पूरन चंद्र खेमका

उत्तर: वास्तु नियमों के अनुसार जो भूमि उत्तर व दक्षिण में तो ऊंची हो, पर मध्य में नीची हो, उसे 'नागपृष्ठ' कहते हैं। ऐसी भूमि पर निवास करना शुभ नहीं माना जाता। जो भूमि दक्षिण से पश्चिम तक ऊंची हो, उसे 'गजपृष्ठ' कहा जाता है। इस भूमि पर निवास करने से ऐश्वर्य, धन, संपदा, सुख और संतान में वृद्धि होती है।


प्रश्न: यदि आग्नेय कोण पर किचन बनाना संभव न हो, तो कहां बना सकते हैं? नॉर्थ-ईस्ट कॉर्नर पर रसोई घर कैसा रहेगा?
- सुप्रिया काबरा

उत्तर : दक्षिण - पूर्व यानी आग्नेय कोण ही अग्नि का सर्वश्रेष्ठ स्थान है , पर यदि यहां पाकशाला बनाना संभव ही हो , तो वायव्य कोण यानी उत्तर - पश्चिम में भी रसोई घर का निर्माण किया जा सकता है। उत्तर - पूर्व में रसोई घर बनाना शुभ नहीं है। इससे पारिवारिक विवाद , मानसिक तनाव , झगड़े धन के अपव्यय की परिस्थिति निर्मित हो सकती है , ऐसा वास्तु शास्त्र के नियम कहते हैं।



टिप्स ऑफ वीक

- साउथ - वेस्ट के कक्ष में चमकीले फर्श , दर्पण इत्यादि से बचना चाहिए। ये कानूनी परेशानियां उत्पन्न करके धन का अपव्यय कर सकते हैं।

- उत्तर या उत्तर - पूर्व में अग्नि की उपस्थिति शुभ फल प्रदायक नहीं होती। यह पारिवारिक अशांति को जन्म देकर सुख - संपत्ति में कमी कर सकता ै। 


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इन खास दिनों पर किसी को कुछ देने से संवर जाती है किस्मत



जीवन में सही समय, सही उद्देश्य के लिया गया अच्छा काम वास्तविक रूप से धर्म पालन है। क्योंकि ऐसे काम ही हमेशा सुख-शांति और यश की कामना को पूरी करने वाले होते हैं। शास्त्रों के मुताबिक दैहिक, मानसिक और आत्मिक सुख देने वाला ऐसा ही कर्म है-दान। 

व्यावहारिक रूप से दान से जुड़ा देने का भाव अहं व स्वार्थ जैसे दोषों को घटाता है। इसलिए दान के लिए त्याग, निस्वार्थ और विनम्रता के भाव ही सार्थक व सुख देने वाले माने गए है। यही कारण है कि जन्म से लेकर मृत्यु कर्मों तक में धार्मिक महत्व की दृष्टि दान परंपराएं जुड़ी है। चाहे वह पशु दान हो या कन्यादान। 

इसी कड़ी में शिवपुराण में लिखा है कि जिसे जिस वस्तु की जरूरत हो, उसे बिना मांगे ही दे दी जाए तो ऐसा दान बहुत फलीभूत होता है। जिसके लिए विशेष दिनों पर किया दान धर्म दीनता व दु:खों से बचाने वाला बताया गया है। जानते हैं वे खास दिन - 

दान के लिए वैसे तो चैत्र सहित सभी हिन्दू पंचांग के बारह माह शुभ है, लेकिन इनमें भी आने वाली विशेष घडिय़ां बहुत शुभ मानी गई है। जो ये हैं - 

- किसी भी माह की सूर्य संक्रांति के दिन किया गया दान अन्य शुभ दिनों की तुलना में दस गुना पुण्य देता है। 

- सूर्य संक्रांति से भी दस गुना पुण्यदायी सूर्य के विषुव योग यानी सूर्य विषुवत् रेखा स्थिति, जो हिन्दू पंचांग के मुताबिक चैत्र नवमी और आश्विन माह की नवमी पर बनता है।  

- विषुव योग से दस गुना फल कर्क संक्रांति यानी दक्षिणायन शुरू होने के दिन। 

- कर्क संक्रांति से भी दस गुना मकर संक्रांति यानी उत्तरायन शुरू होने के दिन। 

- इनसे भी अधिक पुण्य चन्द्रग्रहण और सबसे श्रेष्ठ समय सूर्यग्रहण के दौरान व बाद माना गया है। 

Astrologer Varinder Kumar
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