Monday, May 16, 2011

इसलिए जरूर करें शिव मंदिर में कछुए के दर्शन



शिव कल्याणकारी देवता माने गए हैं। उनका स्वरूप, गुण, गण, शक्तियां, परिवार, पहनावा, अस्त्र-शस्त्र यहां तक कि वाहन भी शुभ और मंगलकारी ही हैं। यही कारण है कि शिवालय ऐसा पावन स्थान होता है, जहां पर शिव उपासना समस्त दु:ख और संताप से छुटकारा मिल जाता है।

शिव मंदिर में शिवलिंग सहित हर देव मूर्ति या चिन्ह सुखी जीवन के कुछ संदेश जरूर देते हैं। बस जरूरत है इनमें छुपे संकेतों को समझने और उनको अपनाने की। जिससे देव दर्शन भी सार्थक बन जाए। जब हम शिवालय जाते हैं तो वहां मूर्तियों के क्रम में नंदी के बाद कछुए की मूर्ति के दर्शन करते हैं। इस कछुए का रुख शिव की ओर होता है। कछुए के शिव की ओर ही बढऩे के पीछे भी छुपे संदेश है। डालते हैं इस पर एक नजर -

जिस तरह शिव मंदिर में नंदी हमारे शरीर को परोपकार, संयम और धर्म की राह पर चलने  के लिए प्रेरित करने वाला माना गया है। ठीक उसी तरह शिव मंदिर में कछुआ मन को संयम, संतुलन और सही दिशा में गति सिखाने वाला माना गया है। कछुए के कवच की तरह हमारे मन को भी हमेशा शुद्ध और पवित्र कार्य करने के लिए ही मजबूत यानि दृढ़ संकल्पित बनाना चाहिए। मन को कर्म से दूर कर मारना नहीं, बल्कि हमेशा अच्छे कार्य करने के लिए तैयार रखना चाहिए। खासतौर पर नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई, दु:ख और पीड़ा को दूर करने के लिए आगे रहना चाहिए यानी मन की गति बनाए रखना जरूरी है।

सरल शब्दों में मन स्वार्थ और शारीरिक सुखों के विचारों में न डूबा रहे, बल्कि मन को साधने के लिए दूसरों के लिए भावना, संवेदना रखकर कल्याण के भाव रखना भी जरूरी है। यही कारण है कि कछुआ मंगलकारी देव शिव की ओर जाता है, न कि नंदी की ओर, जो शरीर के द्वारा आत्म सुख की ओर जाने का प्रतीक है। सरल अर्थ में नंदी शारीरिक कर्म का और कछुआ मानसिक चिंतन का प्रेरक है।

इसलिए अध्यात्म का आनंद पाने के लिए मानसिक चिंतन को सही दिशा देना चाहिए और यह करने के लिए धर्म, अध्यात्म और शिव भक्ति से जुड़ें।




Varinder Kumar
ASTROLOGER
Shop No 74 Ghumar Mandi
Ludhiana Punjab India
01614656864
09915081311
email: sun_astro37@yahoo.com

हाथों की ये लकीरें करवाती हैं हमें विदेश यात्रा..



हाथों की लकीरें हमारे भविष्य की वे सारी बातें स्पष्ट बता देती हैं जो हम जानना चाहते हैं। शादी से लेकर बच्चों तक और नौकरी से लेकर उम्र तक हाथों की लकीरों से सब जाना जा सकता है। विदेशों की सैर या विदेशों में नौकरी कर डालरों में कमाई करने का सपना अधिकतर युवा देखते हैं। कई अपने इस सपने को पूरा भी कर लेते हैं और कई लोगों का सपना अधूरा रह जाता है।

अगर आप भी विदेश यात्रा के सपने संजों रहे हैं तो अपने हाथों की लकीरों को देखकर पता लगा सकते हैं कि आपको परदेश की यात्रा का योग है या नहीं। अगर ऐसा योग है तो विदेश की यात्रा सफल होगी भी या नहीं। ऐसी सारी बातें हमारे हाथों की कुछ लकीरों से पता की जा सकती हैं।

- हाथों की लकीरों में जीवन रेखा से निकली रेखाएं विदेश यात्रा के बारे में बताती हैं।

- मंगल क्षेत्र और शुक्र पर्वत (अंगूठे के नीचे) से निकलने वाली जीवन रेखा से जो छोटी-छोटी रेखाएं निकलती हैं वे विदेश यात्रा की ओर इशारा करती हैं।

- ये रेखाएं जितनी ज्यादा और स्पष्ट होती हैं व्यक्ति अपने जीवन में उतनी ही ज्यादा विदेश यात्राएं करता हैं।

- हथेली की शुरुआत में मणिबंध क्षेत्र स्थित लकीरें भी विदेश यात्रा के योग बताती हैं। अगर इन दोनों स्थानों पर स्पष्ट और गहरी लकीरें हों तो व्यक्ति विदेश यात्रा तो करता ही है साथ ही वहां से लाभ भी कमाता है।

- अगर ये रेखाएं स्पष्ट न हो या इन पर कोई अशुभ चिन्ह वृत्त या क्रास आदि बने हों तो ऐसे व्यक्ति को विदेश यात्रा का योग तो होता है लेकिन इससे कोई लाभ नहीं मिलता।

- ऐसे व्यक्ति की अधिकांश यात्राएं विफल होती हैं।




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डर...! भय के पीछे की असलियत क्या है?



इस दुनिया में जितने लोग हैं, उन सभी का स्वभाव और प्रकृति अलग-अलग होती है। उतने ही तरह के काल्पनिक भय भी पाए जाते हैं। कुछ डर ऐसे होते हैं जो कई लोगों में कामन रूप से पाएं जाते हैं। जैसे खुले स्थान का भय , ऊँचाई का भय , बंद स्थान का भय, अँधेरे का भय , गंदगी का भय। आइये जानें कि किस डर में क्या और क्यों होता है

खुले स्थान का भय :

कभी-कभी कई बार हमें कुछ व्यक्ति यह कहते हुए मिल जाते हैं कि उन्हें खुले स्थान में जाने से डर लगता है। वह व्यक्ति खुले स्थान में अकेले नहीं रह सकता। इस प्रकार का डर ही एगोरा फोबिया कहलाता है। इसमें व्यक्ति बाहर अकेले जाने से या खुले में जाने से डरता है।

ऊँचाई का भय  :

इसके अंतर्गत व्यक्ति ऊँचाई पर जाने से डरता है। घबराहट होती है, चक्कर आते हैं, उसे ऐसा लगता है कि वह ऊँचाई पर पहुँचते ही गिर जाएगा या उसे कुछ हो जाएगा। कई बार जब यह डर व्यक्ति के गहराई में पहुँच जाता है तो वह बेहोश भी हो जाता है।

बंद स्थान का भय  :

कुछ लोगों को बंद स्थान का भय लगता है। बंद स्थान के भय से आशय है उसमें व्यक्ति को लगता है कि अगर वह बंद कमरे में रहता है या रहेगा तो उसे घुटन होगी, घबराहट होगी। वह चाहता है कि वह हर वक्त खुले स्थान में रहे। अगर वह कमरे में भी है तो वह चाहता है कि सारे दरवाजे, खिड़कियाँ खोल दे ताकि अंदर हवा आती रहे। अगर दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हो जाएँगे तो उसे घुटन होगी, घबराहट होगी।

अँधेरे का भय :

इसके अंतर्गत व्यक्ति को अँधेरे में जाने से डर लगता है। उसे लगता है कि अगर वह अँधेरे में जाएगा तो वह उस अँधेरे का सामना नहीं कर पाएगा। कई बार कुछ व्यक्तियों को अँधेरे में जाने का डर इसलिए भी लगता है, क्योंकि वे सोचते हैं कि अँधेरे में कहीं उन पर भूत-प्रेत आदि न आ जाएँ।

गंदगी का भय):

इसके अंतर्गत व्यक्ति को गंदगी से भय लगता है। उसे लगता है कि अगर वह किसी व्यक्ति, वस्तु को छुएगा तो उसकी गंदगी, कीटाणु आदि उसे भी लग जाएँगे और वह बीमार हो जाएगा। वह इस भय से छुटकारा पाने के लिए कई बार स्नान करता है, अपने आपको पानी व साबुन से बार-बार साफ करता है। घर, कमरे, उसकी वस्तुओं की भी सफाई करता है क्योंकि उसे ऐसा भय लगता है कि अगर उसकी वस्तुओं को किसी ने छू लिया तो उसमें कीटाणु लग जाएँगे। वह बीमार हो जाएगा।

और भी कई प्रकार के भय पाए जाते हैं। ऐसा नहीं कि ये भय केवल कुछ व्यक्तियों को किसी उम्र में ही होते हैं। भय बच्चों को भी लगता है। उन्हें कई प्रकार के भय लगते हैं। जैसे स्कूल जाने का भय, परीक्षा में पास न होने का भय। एक भय के खत्म होते ही दूसरा भय उसकी जगह ले लेता है।

ऐसे बचें काल्पनिक भयों से:

-किसी मनोरोग विशेषज्ञ, या साइक्रेटिस्ट  से सलाह लें और खुलकर अपनी समस्या बताएं।

-नकारात्मक विचारों और दोस्तों से दूर रहें।

-अपनी दिनचर्या नियमित रखें।

-योग-प्राणायाम को अपनी नियमित दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

-30 मिनिट आध्यात्मिक साहित्य पढऩे के लिये रोज निकालें।

-जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत डालें।

-कोरी कल्पनाएं करने और योजनाएं बनाते रहने में समय बर्बाद करने की बजाय, एक छोटा सा ही काम करें

 पर पूरी मेहनत और जी-जान लगाकर करें।

ऊपर बताए गए उपायों को पूरी तरह से अपना लेने पर आपका आत्मविश्वास बढऩे लगेगा। जैसे प्रकाश के प्रकट होते ही अंधेरा मिट जाता है, वैसे ही आत्मविश्वास के पैदा होते ही सारे काल्पनिक डरों का अस्तित्व सदैव के लिये समात्प हो जाता है।




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