शिव कल्याणकारी देवता माने गए हैं। उनका स्वरूप, गुण, गण, शक्तियां, परिवार, पहनावा, अस्त्र-शस्त्र यहां तक कि वाहन भी शुभ और मंगलकारी ही हैं। यही कारण है कि शिवालय ऐसा पावन स्थान होता है, जहां पर शिव उपासना समस्त दु:ख और संताप से छुटकारा मिल जाता है।
शिव मंदिर में शिवलिंग सहित हर देव मूर्ति या चिन्ह सुखी जीवन के कुछ संदेश जरूर देते हैं। बस जरूरत है इनमें छुपे संकेतों को समझने और उनको अपनाने की। जिससे देव दर्शन भी सार्थक बन जाए। जब हम शिवालय जाते हैं तो वहां मूर्तियों के क्रम में नंदी के बाद कछुए की मूर्ति के दर्शन करते हैं। इस कछुए का रुख शिव की ओर होता है। कछुए के शिव की ओर ही बढऩे के पीछे भी छुपे संदेश है। डालते हैं इस पर एक नजर -
जिस तरह शिव मंदिर में नंदी हमारे शरीर को परोपकार, संयम और धर्म की राह पर चलने के लिए प्रेरित करने वाला माना गया है। ठीक उसी तरह शिव मंदिर में कछुआ मन को संयम, संतुलन और सही दिशा में गति सिखाने वाला माना गया है। कछुए के कवच की तरह हमारे मन को भी हमेशा शुद्ध और पवित्र कार्य करने के लिए ही मजबूत यानि दृढ़ संकल्पित बनाना चाहिए। मन को कर्म से दूर कर मारना नहीं, बल्कि हमेशा अच्छे कार्य करने के लिए तैयार रखना चाहिए। खासतौर पर नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई, दु:ख और पीड़ा को दूर करने के लिए आगे रहना चाहिए यानी मन की गति बनाए रखना जरूरी है।
सरल शब्दों में मन स्वार्थ और शारीरिक सुखों के विचारों में न डूबा रहे, बल्कि मन को साधने के लिए दूसरों के लिए भावना, संवेदना रखकर कल्याण के भाव रखना भी जरूरी है। यही कारण है कि कछुआ मंगलकारी देव शिव की ओर जाता है, न कि नंदी की ओर, जो शरीर के द्वारा आत्म सुख की ओर जाने का प्रतीक है। सरल अर्थ में नंदी शारीरिक कर्म का और कछुआ मानसिक चिंतन का प्रेरक है।
इसलिए अध्यात्म का आनंद पाने के लिए मानसिक चिंतन को सही दिशा देना चाहिए और यह करने के लिए धर्म, अध्यात्म और शिव भक्ति से जुड़ें।
Varinder Kumar
ASTROLOGER
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