Monday, May 16, 2011

डर...! भय के पीछे की असलियत क्या है?



इस दुनिया में जितने लोग हैं, उन सभी का स्वभाव और प्रकृति अलग-अलग होती है। उतने ही तरह के काल्पनिक भय भी पाए जाते हैं। कुछ डर ऐसे होते हैं जो कई लोगों में कामन रूप से पाएं जाते हैं। जैसे खुले स्थान का भय , ऊँचाई का भय , बंद स्थान का भय, अँधेरे का भय , गंदगी का भय। आइये जानें कि किस डर में क्या और क्यों होता है

खुले स्थान का भय :

कभी-कभी कई बार हमें कुछ व्यक्ति यह कहते हुए मिल जाते हैं कि उन्हें खुले स्थान में जाने से डर लगता है। वह व्यक्ति खुले स्थान में अकेले नहीं रह सकता। इस प्रकार का डर ही एगोरा फोबिया कहलाता है। इसमें व्यक्ति बाहर अकेले जाने से या खुले में जाने से डरता है।

ऊँचाई का भय  :

इसके अंतर्गत व्यक्ति ऊँचाई पर जाने से डरता है। घबराहट होती है, चक्कर आते हैं, उसे ऐसा लगता है कि वह ऊँचाई पर पहुँचते ही गिर जाएगा या उसे कुछ हो जाएगा। कई बार जब यह डर व्यक्ति के गहराई में पहुँच जाता है तो वह बेहोश भी हो जाता है।

बंद स्थान का भय  :

कुछ लोगों को बंद स्थान का भय लगता है। बंद स्थान के भय से आशय है उसमें व्यक्ति को लगता है कि अगर वह बंद कमरे में रहता है या रहेगा तो उसे घुटन होगी, घबराहट होगी। वह चाहता है कि वह हर वक्त खुले स्थान में रहे। अगर वह कमरे में भी है तो वह चाहता है कि सारे दरवाजे, खिड़कियाँ खोल दे ताकि अंदर हवा आती रहे। अगर दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हो जाएँगे तो उसे घुटन होगी, घबराहट होगी।

अँधेरे का भय :

इसके अंतर्गत व्यक्ति को अँधेरे में जाने से डर लगता है। उसे लगता है कि अगर वह अँधेरे में जाएगा तो वह उस अँधेरे का सामना नहीं कर पाएगा। कई बार कुछ व्यक्तियों को अँधेरे में जाने का डर इसलिए भी लगता है, क्योंकि वे सोचते हैं कि अँधेरे में कहीं उन पर भूत-प्रेत आदि न आ जाएँ।

गंदगी का भय):

इसके अंतर्गत व्यक्ति को गंदगी से भय लगता है। उसे लगता है कि अगर वह किसी व्यक्ति, वस्तु को छुएगा तो उसकी गंदगी, कीटाणु आदि उसे भी लग जाएँगे और वह बीमार हो जाएगा। वह इस भय से छुटकारा पाने के लिए कई बार स्नान करता है, अपने आपको पानी व साबुन से बार-बार साफ करता है। घर, कमरे, उसकी वस्तुओं की भी सफाई करता है क्योंकि उसे ऐसा भय लगता है कि अगर उसकी वस्तुओं को किसी ने छू लिया तो उसमें कीटाणु लग जाएँगे। वह बीमार हो जाएगा।

और भी कई प्रकार के भय पाए जाते हैं। ऐसा नहीं कि ये भय केवल कुछ व्यक्तियों को किसी उम्र में ही होते हैं। भय बच्चों को भी लगता है। उन्हें कई प्रकार के भय लगते हैं। जैसे स्कूल जाने का भय, परीक्षा में पास न होने का भय। एक भय के खत्म होते ही दूसरा भय उसकी जगह ले लेता है।

ऐसे बचें काल्पनिक भयों से:

-किसी मनोरोग विशेषज्ञ, या साइक्रेटिस्ट  से सलाह लें और खुलकर अपनी समस्या बताएं।

-नकारात्मक विचारों और दोस्तों से दूर रहें।

-अपनी दिनचर्या नियमित रखें।

-योग-प्राणायाम को अपनी नियमित दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

-30 मिनिट आध्यात्मिक साहित्य पढऩे के लिये रोज निकालें।

-जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत डालें।

-कोरी कल्पनाएं करने और योजनाएं बनाते रहने में समय बर्बाद करने की बजाय, एक छोटा सा ही काम करें

 पर पूरी मेहनत और जी-जान लगाकर करें।

ऊपर बताए गए उपायों को पूरी तरह से अपना लेने पर आपका आत्मविश्वास बढऩे लगेगा। जैसे प्रकाश के प्रकट होते ही अंधेरा मिट जाता है, वैसे ही आत्मविश्वास के पैदा होते ही सारे काल्पनिक डरों का अस्तित्व सदैव के लिये समात्प हो जाता है।




Varinder Kumar
ASTROLOGER
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