Sunday, May 15, 2011

हनुमान चालीसा को पढऩा ही जरूरी क्यों है?



पूजा-पाठ में अधिकांश लोग मंत्रों को, शब्दों को रट लेते हैं। यह सही है कि श्रद्धा से पढ़े हुए शब्द अपना असर करते हैं, लेकिन अर्थ समझकर दिल से यदि पंक्तियां बोली जाएंगी तो परिणाम और सुंदर होंगे। हनुमानचालीसा की ३९वीं चौपाई में तुलसीदासजी कहते हैं-

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा। 

ऐसा नहीं लिखा है कि जो यह 'बोले', लिखा है 'पढ़े', क्योंकि पुस्तक खोलकर पढऩे का मतलब है कि नेत्रों से पढऩा ही पड़ेगा। तुलसीदासजी यहां ऐसा लिख सकते थे कि जो यह 'सुने' हनुमान चालीसा। ऐसा होता तो लोगों को और आराम मिल जाता। किसी को सामने बैठा लेते कि सुनाओ, पांच बार वो सुना देता, हम सुन लेते, लेकिन तुलसीदासजी ने स्पष्ट लिखा है जो यह 'पढ़ै' हनुमान चालीसा।

पढऩा खुद को पड़ता है, सुना कोई दूसरा भी सकता है। 'पढ़ै' शब्द का एक और गूढ़ अर्थ है। यदि हम जप भी करें तो हृदय की पुस्तक पर उस जप को पढ़ते रहें। कहने का मतलब यह है कि गाएं भी तो अंतर्मुखी होकर हृदय की पुस्तक पर पढ़कर गाएं। मन की पुस्तक खुली हुई है और हम उसे पढ़ रहे हैं, तो आनन्द अलग ही आएगा। इसलिए गोस्वामीजी ने कहा कि पढऩा ही पड़ेगा।

आगे वर्णन आया है 'होय सिद्धि साखी गौरीसा।' तुलसीदासजी ने प्रमाण दिया 'साखी गौरीसा।' गौरीसा का अर्थ है शंकर और पार्वतीजी। इनकी शपथ ली गई है। क्योंकि इन्हें श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक माना गया है। कहने का मतलब यह है कि श्री हनुमानचालीसा श्रद्धा और विश्वास के साक्ष्य में पढ़ी जाए। हमारे भीतर श्रद्धा और विश्वास है इसको प्रकट करने का एक सरल तरीका है जरा मुस्कराइए...।

Varinder Kumar
ASTROLOGER
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