सामान्यत: ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय किसी भी गर्भवती महिला को अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। पुराने समय में इस बात का सख्ती से पालन कराया जाता था और ग्रहण के समय खासतौर पर महिलाओं को घर से बाहर निकलने से मना किया जाता था।
लुधियाना के ज्योतिषाचार्य Varinder Kumar JI के अनुसार ग्रहण के समय नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं जो कि गर्भवती स्त्री को बहुत ही जल्द अपने प्रभाव में ले लेती हैं। जिससे गर्भ में पल रहे शिशु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यहां नकारात्मक शक्ति से अभिप्राय है कि आसुरी प्रवृत्तियां। ग्रहण के समय में बुरी शक्तियां अपने पूरे बल में होती हैं। यह शक्तियां को लड़कियां से बहुत ही जल्द प्रभावित होती हैं। जिससे वे उन्हें अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करती हैं। इन शक्तियों के प्रभाव में आने के बाद गर्भवती स्त्री का मानसिक स्तर व्यवस्थित नहीं रह पाता और उनके पागल होने का खतरा बढ़ जाता है।विज्ञान के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्र न दिखाई देने के कारण हमारे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है। हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है जिसे चंद्रमा सीधे-सीधे प्रभावित करता है।
ज्योतिष में चंद्र को मन का देवता माना गया है। ग्रहण के समय चंद्र दिखाई नहीं ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। गर्भवती स्त्रियां उस समय में बेहद संवेदनशील और कोमल हो जाती हैं। छोटी-छोटी बातों का भी उन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब चंद्र नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर के पानी में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है। इन्हीं कारणों से ग्रहण काल में गर्भवती स्त्रियों को अकेले बाहर जाने के लिए मना किया जाता था। चंद्रमा हमारे शरीर के जल को किस प्रकार प्रभावित करता है इस बात का प्रमाण है समुद्र का ज्वारभाटा। पूर्णिमा और अमावस के दिन ही समुद्र में सबसे अधिक हलचल दिखाई देती है क्योंकि चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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