शादी-ब्याह पर चार माह के लिए रोक लग जाएगी। हिन्दू धर्म में चर्तुमास में विवाह निषेध माने गए हैं। इसका कारण यह है कि धार्मिक शास्त्रों के अनुसार यह मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि से भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया।
अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 माह पाताल में निवास करते हैं। शादी-ब्याह पर रोक लगाने का एक कारण यह भी है। इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है।
इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि वर्षा ऋतु में विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते है। साथ ही इन दिनों ही कई बड़े त्यौहार आते हैं। इसीलिए त्यौहार व शादी दोनों का उल्लास और हर्ष समय-समय पर बना रहे। इसीलिए चार माह तक शादी-ब्याह नहीं किए जाते हैं।
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