हिन्दू धर्म में जहां यमराज को मृत्य यानी काल का देवता माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक यम का देवत्व रुप धर्मराज और पितृत्व रुप यमराज होता है। इसलिए कार्तिक माह में यम पूजा व दीपदान हर भय, चिंता, रोग कष्ट से मुक्त करने वाला माना गया है।
इसी माह की कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी सूर्य षष्ठी पर भी यमदेव का स्मरण संकटमोचक होता है। क्योंकि शास्त्रों में यमदेव सूर्य पूत्र बताए गए हैं। यम और सूर्य दोनों का संबंध काल से हैं। व्यावहारिक नजरिए से भी बुरे वक्त से बचने के लिए यम पूजा शुभ फल देती है।
खासतौर पर घर-परिवार, रिश्तों और जीवन को दीर्घ और संकटमुक्त रखने रखने के लिए इस दिन यम का विशेष मंत्र से स्मरण और दीप प्रज्जवलन का महत्व है। जानते हैं यमदेव की सरल पूजा विधि और विशेष मंत्र -
यमदेव की सरल पूजा विधि -
- शाम को यम तर्पण या यम उपासना करें। यम तर्पण में नदी या तीर्थ में दक्षिण दिशा में मुंह कर हथेलियों में जल, तिल और कुश लेकर नम: यमाय या नम: धर्मराजाय बोलकर जल छोड़ें। इस दिन जनेऊधारी हो तो जनेऊ को माला की तरह पहने और काले, सफेद तिलों को उपयोग में लें।
- इसी तरह शाम को तिल के तेल से भरे 5 या 11 दीपक जलाकर उसकी गंध, अक्षत, पुष्प से पूजा करें और दक्षिण दिशा में मुंह करके यमदेवता का ध्यान कर मंदिर या तीर्थ में दीपदान करें। साथ ही नीचे लिखें यम गायत्री मंत्र का यथाशक्ति या कम से कम 108 बार स्मरण करें -
ऊँ सूर्यपुत्राय धीमहि
महाकालाय धीमहि
तन्नो यम: प्रचोदयात्।।
- यमदेवता की आरती कर काल, भय व रोग मुक्ति की कामना करें।
अगर आपकी धर्म और उपासना से जुड़ी कोई जिज्ञासा हो या कोई जानकारी चाहते हैं तो इस आर्टिकल पर टिप्पणी के साथ नीचे कमेंट बाक्स के जरिए हमें भेजें।
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