Friday, October 14, 2011

करवा चौथ पर सुनें यह कथा, मिलेगी जीवन की हर खुशी


करवा चौथ अखंड सौभाग्य का व्रत है। इस बार यह व्रत 15 अक्टूबर, शनिवार को है। इस व्रत की कथा का उल्लेख श्रीवामन पुराण में भी है जो इस प्रकार है-

किसी समय इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मïण रहता था। उसकी पत्नी लीलावती से उसके सात पुत्र और एक सुलक्षणा वीरावती नामक पुत्री पैदा हुई। वीरावती के युवा होने पर उसका विवाह एक उत्तम ब्राह्मïण से कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई, तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ बड़े प्रेम से करवा चौथ का व्रत शुरू किया लेकिन भूख-प्यास से पीडि़त होकर वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई व्याकुल हो गए और इसका उपाय खोजने लगे।

उन्होंने अपनी लाड़ली बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी, तो उसने विधिपूर्वक अध्र्य देकर भोजन कर लिया। ऐसा करने से उसके पति की मृत्यु हो गई। अपने पति के मृत्यु से वीरावती व्याकुल हो उठी। उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात्रि में इंद्राणी पृथ्वी पर विचरण करने आई। ब्राह्मïण-पुत्री ने उससे अपने दु:ख का कारण पूछा, तो इंद्राणी ने बताया- हे वीरावती। तुमने अपने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत किया था, पर वास्तविक चंद्रोदय के होने से पहले ही अध्र्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया।

अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी। वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधानानुसार किया, तो इंद्राणी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रसन्न होकर चुल्लूभर पानी उसके पति के मृत शरीर पर छिड़क दिया। ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो उठा। घर आकर वीरावती अपने पति के साथ वैवाहिक सुख भोगने लगी। समय के साथ उसे पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला।

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