शास्त्रों में शनिवार के साथ
चतुर्थी का योग संकटमोचक माना जाता है। क्योंकि चतुर्थी पर भगवान गणेश की
उपासना से विघ्रनाश तो शनिवार शनिदेव की पूजा से पीड़ाओं से छुटकारे का
विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं में शनिदेव को गणेश भक्ति द्वारा
शापमुक्ति का प्रसंग बताता है कि श्री गणेश की पूजा करने वाले भक्त शनिदेव
का कृपा पात्र बनता है।
ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक कुण्डली में शनि दोष जीवन में शारीरिक, मानसिक व भाग्य बाधा का कारण बन सकता है। इसलिए इन परेशानियों से निजात पाने का आसान उपाय संकट चतुर्थी या शनिवार को भगवान गणेश का स्मरण माना जाता है।
भगवान गणेश की उपासना के लिए किसी देवालय में भगवान गणेश के सामने मात्र धूप बत्ती लगाने के साथ दूर्वा व मोदक का भोग चढ़ाकर शनि दोष शांति की कामना से गणेश के संकष्टनाशनंस्तोत्र का पाठ करना भी आसान व कारगर माना गया है। जानते हैं यह स्त्रोत -
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेनित्यमायु: कामार्थसिद्धये।1।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णंपिङा्गक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।2।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।3।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।4।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।5।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।6।
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।8।
इति श्रीनारद पुराणे संकष्टनाशनंस्तोत्रं संपूर्णम्।
ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक कुण्डली में शनि दोष जीवन में शारीरिक, मानसिक व भाग्य बाधा का कारण बन सकता है। इसलिए इन परेशानियों से निजात पाने का आसान उपाय संकट चतुर्थी या शनिवार को भगवान गणेश का स्मरण माना जाता है।
भगवान गणेश की उपासना के लिए किसी देवालय में भगवान गणेश के सामने मात्र धूप बत्ती लगाने के साथ दूर्वा व मोदक का भोग चढ़ाकर शनि दोष शांति की कामना से गणेश के संकष्टनाशनंस्तोत्र का पाठ करना भी आसान व कारगर माना गया है। जानते हैं यह स्त्रोत -
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भक्तावासं स्मरेनित्यमायु: कामार्थसिद्धये।1।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णंपिङा्गक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।2।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।3।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।4।
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न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।5।
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