Friday, May 6, 2011

गुण मिलाना-कुंडली मिलान



भारतीय समाज में तो कम से कम विवाह को जन्मों का संबंध माना जाता है। विवाह के बाद युगल एक दूसरे को प्रभावित करते हैं और उनकी कुंडली का सम्मिलित असर उनके भविष्य पर होता है। यही कारण है कि विवाह से पूर्व संभावित दूल्हा दुल्हन के कुंडली का मिलान किया जाता है, जिसकी मदद से यह पता लगाया जाए कि दोनों के बीच तालमेल किस तरह का रहेगा। उनकी योग्यता को सुनिश्चित किया जाता है। किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली की मदद से उस व्यक्ति के स्वभाव, पसंद, सामाजिकता,संचार कौशळ तथा व्यवहार के संबंध में जाना जा सकता है।

सामान्यतः उत्तर और दक्षिण भारत में कुंडली मिलाने का तरीका एक जैसा है। फिर भी कुछ बातें दक्षिण भारत में थोड़ी अलग हैं। कुंडली मिलाते समय आठ मुख्य चीजें उत्तर और दक्षिण भारत में एक सामान रूप से देखी जाती हैं । ये हैं- वर्ण, वैश्य, तारा या दिना,योनी, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी।

हर घटक को एक निश्चित अंक दिया गया है जो इस तरह हैं- वर्ण को१ अंक , वैश्य को २, दिना को ३, योनी को ४, ग्रह मैत्री को ५, गण को ६, भकूट को ७ और नाड़ी को ८ अंक दिया गया है । सबका जोड़ कुल ३६ अंक होते हैं।

इस मानदंड के आधार पर, दो संभावित लोगों की कुंडली को मिलाना और उसके फल की गणना करना ही गुण मिलान कहलाता है.

३६ में १८ अंक ५० % हुआ जिसे औसत माना जाता है और २८ अंक मिले तो संतोषजनक मानते हैं। कुंडली मिलाने के समय कम से कम १८ अंक मिलने चाहिए।

यदि होनेवाले दूल्हा दुल्हन एक ही नाड़ी के हों तो यह नाड़ी दोष कहलाता है। उदहारण के लिए, यदि दोनों की मध्य नाड़ी हो तो इस नाड़ी दोष से बच्चे के जन्म में समस्या आती है।

यह एक गहन अध्ययन का विषय है कि गणना के दौरान केवल इन्ही कारकों को क्यों देखा गया । फिर भी इसकी वैधता पर सवाल नहीं किये जा सकते। उदहारण के लिए, यदि लड़की श्वान योनी (श्वान -कुत्ता) में पैदा हुई और लड़का मंजर योनी (मंजर- बिल्ली) का है, तो ऐसी स्थिति में लड़की हमेशा लड़के पर हावी रहेगी। यह भविष्यवाणी कुत्ता बिल्ली के स्वाभाव के आधार पर की जा सकती है।

पूरे भारत में कुंडली मिलाते समय मंगल दोष को गंभीरता से लिया जाता है जबकि ज्योतिषी शनि दोष को उतना गंभीर नहीं मानते हैं। कुंडली मिलाते समय राशि यानि चन्द्रमा का सही तरीके से मिलान और उसके फल पर विचार करना चाहिए। कुंडली मिलाते समय लग्न का भी बराबर का महत्त्व है।

दक्षिण भारत में कुंडली मिलाते समय इन १० कारकों पर विचार किया जाता है- 

धिना- सितारों के आधार पर होनेवाले दूल्हा दुल्हन के दापंत्य जीवन की आयु के आधार पर गणना की जाती है।
गण – सुखी जीवन और सामान्य भलाई का प्रतिनिधित्व करता है।
महेंद्र- बच्चे के जन्म की संभावना से संबंधित है।
स्त्री दीर्घा-यह भी सुखी और सामान्य जीवन के लिए होता है।
योनी - आनंददायक और संतुलित वैवाहिक जीवन के लिए देखा जाता है।
राशि – यह संतान तथा उनकी खुशी के लिए होता है।
रहस्याधिपति - यह भी वंश और धन के बारे में होता है।
वैस्य - यह विवाह से मिलने वाले प्यार और खुशियों के लिए होता है।
रज्जू - यह लम्बे वैवाहिक जीवन के लिए काफी महत्वपूर्ण है और साथ ही साथ दूल्हा दुल्हन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
वेधई – यदि वेधई शून्य हो तो वैवाहिक जीवन, सभी तरह की विपदाओं से बचा रहता है।

कुंडली मिलाने के लिए पाश्चात्य ज्योतिषिय अवधारणाओं पर भी अमल किया जाता है।यह तरीका कॉम्पोसाईट चार्ट कहलाता है। कॉम्पोसाईट चार्ट एक विधि है जिसमें एक कुंडली के प्रभाव की तुलना को दूसरे की कुंडली से की जाती है। जैसे- दूल्हे का लग्न तुला है और दुल्हन का मकर, ऐसे में वैवाहिक गठबंधन नहीं होना चाहिए क्योंकि दोनों एक दूसरे के वर्ग में हैं। इस कारण दोनों में विचारक मतभेद और संघर्ष होता रहेगा। दूसरी ओर अगर दूल्हा तुला लग्न में और दुल्हन कुंभ में हो तो उनका जीवन बहुत ही आनंदमय बितेगा क्योंकि दोनों की राशि में एक ही तत्व है -वायु ।

दूसरी स्थिति में यदि दूल्हा अपना व्यवसाय करता है और दूल्हन का राहू और शनि दूल्हे के तीसरे घर को प्रभावित करता है तो शादी के बाद दूल्हे को व्यवसाय में हानि उठानी पड़ेगी।आपसी शारीरिक आकर्षण के लिए दूल्हा के साथ ही दुल्हन का शुक्र अनुकूल स्थिति में होना चाहिए। अगर वे त्रिभुज में हैं तो यह अच्छा हो सकता है, अगर वे वर्ग में होंगे तो यह प्रेम जीवन में तनाव का संकेत है। इसी तरह, युगल के लिए सामान्य खुशियां और दोनों के बीच मजबूत बंधन के लिए दोनों कुंडली में सप्तम भाव के मालिक के बीच अच्छे संबंध होने चाहिए।

कुंडली का मिलान तब अधिक प्रभावी और उपयोगी हो जाता है जब गणना में सभी कारकों पर विचार किया जाए। कुंडली मिलान के साथ ही उससे संबंधित विवरणों कि उचित व्याख्या जरुरी है ताकि भविष्यवाणी सटीक हो। यह वैवाहिक जीवन में बड़े झटके को कम कर देता है।




Varinder Kumar
ASTROLOGER
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