हर महिला मां बनने का सुख चाहती है।
लेकिन कुछ महिलाओं की ये इच्छा पूरी नहीं हो पाती है और वे दुनिया के सबसे
खुबसुरत सुख से वंचित रह जाती हैं। इसके कई शारिरीक कारण होते है लेकिन इस
समस्या को ज्योतिषीय नजरीये से देखा जाए तो इसके कई कारण सामने आते हैं।
जानें क्या है ज्योतिषीय कारण...
-अगर किसी स्त्री की कुंडली के पांचवे घर में राहु होता है तो उसको पहली संतान बड़ी मुश्किल से जन्म लेती है । कभी कभी गर्भपात के भी योग बनते है। राहु अगर वृश्चिक राशि में होता है तो संतान योग नहीं होता है।
- इसी तरह अगर केतु पांचवें घर में होता है तो भी पुत्र प्राप्ति में परेशानि होती है। क्योंकि राहु की दृष्टि पांचवे घर पर पड़ती है इसलिए पहली संतान के समय मिसकरेज यानि गर्भपात के होने के योग बनते हैं और संतान सुख नही मिल पाता है।
- कुंडली के पांचवें घर में जो नंबर हो यानी जो राशि हो उसका स्वामी ग्रह पाप ग्रहों के साथ हो या पाप ग्रहों से पिडि़त हो तो ऐसी स्त्री को भी संतान सुख नही मिल पाता है।
- संतान न होना या इस सुख में कमी होने का एक कारण कालसर्प दोष और अंगारक योग का होना होता है। इन दोष के ही कारण दांपत्य सुख में भी कमी आती है।
- किसी स्त्री की कुंडली के पहले भाव में 3 नंबर हो यानी मिथुन लग्र हो और शनि कुंडली के ग्यारहवें भाव में होता है तो संतान प्राप्ति में परेशानि होती है।
- किसी स्त्री की कुंडली के सातवें घर में मंगल-शनि होते है तो संतान योग बनने की संभावना और कम हो जाती है।
-अगर किसी स्त्री की कुंडली के पांचवे घर में राहु होता है तो उसको पहली संतान बड़ी मुश्किल से जन्म लेती है । कभी कभी गर्भपात के भी योग बनते है। राहु अगर वृश्चिक राशि में होता है तो संतान योग नहीं होता है।
- इसी तरह अगर केतु पांचवें घर में होता है तो भी पुत्र प्राप्ति में परेशानि होती है। क्योंकि राहु की दृष्टि पांचवे घर पर पड़ती है इसलिए पहली संतान के समय मिसकरेज यानि गर्भपात के होने के योग बनते हैं और संतान सुख नही मिल पाता है।
- कुंडली के पांचवें घर में जो नंबर हो यानी जो राशि हो उसका स्वामी ग्रह पाप ग्रहों के साथ हो या पाप ग्रहों से पिडि़त हो तो ऐसी स्त्री को भी संतान सुख नही मिल पाता है।
- संतान न होना या इस सुख में कमी होने का एक कारण कालसर्प दोष और अंगारक योग का होना होता है। इन दोष के ही कारण दांपत्य सुख में भी कमी आती है।
- किसी स्त्री की कुंडली के पहले भाव में 3 नंबर हो यानी मिथुन लग्र हो और शनि कुंडली के ग्यारहवें भाव में होता है तो संतान प्राप्ति में परेशानि होती है।
- किसी स्त्री की कुंडली के सातवें घर में मंगल-शनि होते है तो संतान योग बनने की संभावना और कम हो जाती है।
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